व्यर्थ का झगड़ा - एक शिक्षाप्रद कहानी

व्यर्थ का झगड़ा - एक शिक्षाप्रद कहानी

रामपुर गाँव में हाथी का आगमन

रामपुर गाँव में एक हाथी आ गया था। गाँव के बहुत से लोग उसे देखने गये। उनमें छः अन्धे भी थे। उन्होंने अपने-अपने हाथ से हाथी को छूकर जानना चाहा कि हाथी कैसा होता है।

छः अंधों का अनुभव

पहला अंधा, जिसने हाथी की सूँड़ को छुआ, उसने कहा, "अरे, हाथी तो एक मोटे साँप जैसा होता है।"

दूसरा अंधा, जिसने हाथी के पैर को छुआ, बोला, "नहीं, नहीं, हाथी तो एक बड़े खम्भे जैसा होता है।"

तीसरा अंधा, जिसने हाथी के पेट को छुआ, उसने कहा, "तुम दोनों गलत हो। हाथी तो एक दीवार जैसा बड़ा और चौड़ा होता है।"

चौथे अंधे ने, जिसने हाथी के कान को छुआ, वह बोला, "तुम सब गलत हो। हाथी तो एक बड़े पंखे जैसा होता है।"

पाँचवे अंधे ने, जिसने हाथी की पूँछ को पकड़ा, कहा, "हाथी तो एक रस्सी जैसा होता है।"

और छठे अंधे ने, जिसने हाथी के दाँत को छुआ, कहा, "नहीं, तुम सब लोग गलत हो। हाथी तो एक नुकीले भाले जैसा होता है।"

झगड़े का निवारण

अब वे सभी अंधे आपस में झगड़ने लगे कि हाथी वास्तव में कैसा होता है। उनमें से प्रत्येक अपने-अपने अनुभव को सही मानता था और दूसरों को गलत ठहराता था। गाँव के लोग उनकी इस बहस को सुन रहे थे और उनकी अज्ञानता पर हंस रहे थे।

तभी वहाँ एक समझदार व्यक्ति आया। उसने सबकी बातें सुनीं और मुस्कुराते हुए कहा, "तुम सभी अपने-अपने अनुभवों में सही हो, लेकिन तुमने हाथी का केवल एक-एक हिस्सा छुआ है। हाथी के बारे में पूरी सच्चाई समझने के लिए तुम्हें उसे पूरी तरह से जानना होगा। वह न तो सिर्फ एक साँप जैसा है, न ही खम्भा, न दीवार, न पंखा, न रस्सी, और न ही भाला। हाथी इन सबका मेल है।"

यह सुनकर सभी अंधों ने अपनी गलती समझी और अपने झगड़े को समाप्त कर दिया। उन्होंने सीखा कि कभी-कभी हम अपनी सीमित जानकारी के आधार पर पूरी सच्चाई का अंदाजा नहीं लगा सकते। सच्चाई को पूरी तरह से समझने के लिए हमें उसके हर पहलू को जानने की कोशिश करनी चाहिए।

कहानी से मिली सीख

इस प्रकार, गाँव वालों ने उस दिन 'व्यर्थ का झगड़ा' होते देखा और इस घटना से सबक सीखा कि हमें अपने ज्ञान और अनुभवों को संकीर्ण दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए।